मुगल सम्राट बाबर तथा राजस्थान के रणबाँकुरे राणा
सांगा में कनवाह में संग्राम छिड़ गया था | बाबरी बारूद की आंधी में राजपूत लोटने
लगे थे | पराजित होते हुए भी साँगा ने ठान लिया था कि तुर्कों के दांत खट्टे किये
बिना चित्तौड़ की ओर कूच नहीं करूँगा, किन्तु तुर्की बारूद की आंच में तपकर
राजपूतों का उजला साहस कड़ा पड़ गया था | राणा ने लाख कोशिश की, किन्तु उनके मुर्दा
दिलों में जान फूंकने में स्वयं को असमर्थ-सा पा रहा था | निराशा उसके हृदय में घर
कर रही थी | वह सोच नहीं पा रहा था कि क्या करे—क्या वापस लौटे और राजपूती शान पर
बट्टा लगने दे ? चारण टोडरमल से यह सब देखा न गया| उसके मुख से ओज-भरी निम्न वाणी
स्फुरित हुई—
सत बार
जरासंध आगला, श्रीरंग बिमुहाटी कम दिघ बग,
मेलि घाट मारे मधुसूदन, असुर घाट नांखे अलख |
पारस हे करसां हाथणापुर, हटीयोन्नीयां पंडतां हाथ,
देख जाकर दुरजोधन कीधी, पाछै तक कीधी सजपाथ |
इकरा राम तणी तिय रावण, मंद हरेगो दह कमल,
टीकम सोहिज पत्थर तरिया, जननायक उपर जल |
एक राड भव माह अव्त्थी, असरस आणे केम उर,
मलतणा केव ऋण माँगा, सांगा तू सालै असुर ||
---- “महाराणा आप उदास क्यों हैं ? कृष्ण सौ बार
जरासंध से हारे, पर अंत में उन्होंने उसे हरा ही दिया, जब दुर्योधन ने द्रोपदी पर
हाथ उठाया, अर्जुन पीछे हट गया, पर अंत में उसने दुर्योधन का क्या हाल किया ? रावण
सीता को हर ले गया, पर राम ने समुद्र पार करने उसका क्या हाल किया ? हे सांग, तुम
एक बार की पराजय पर ही इतना दु:ख क्यों करते हो? तुम तो अब भी दुश्मन की छाती में
कांटे की तरह खटक रहे हो |”
निराशा की कीच में डूबते सांगा ने आवेश में दौड़कर
चारण को गले से लगा लिया और उसने उसी समय अपनी सेना को बाबर के विरुद्ध कूच करने
का आदेश दिया | किन्तु उसने सरदारों के कलेजे ऐसे बैठ गये थे कि उन पर इसका कोई
असर न हुआ, बल्कि युद्ध के भय से रास्ते में ही सांगा को जहर दे दिया गया |