अगहन
महीने
के शुक्ल
पक्ष
की एकादशी
तिथि
में
पड़ने
वाली
मोक्षदा
एकादशी
को लेकर
ऐसी
मान्यता
है कि
इससे
नरक
में
गए पितरों
का उद्धार
होता
है और
नरक
की यातनाओं
से मुक्ति
मिलती
है |
इस
बार
यह व्रत
11 दिसंबर
को रखा
जाएगा।
ऐसी
मान्यता
है कि
मोक्षदा
एकादशी
का व्रत
करने
से व्यक्ति
की सभी
मनोकामनाएं
पूरी
होती
है और
उसको
मोक्ष
की भी
प्राप्ति
होती
है |
हिंदू पंचांग के अनुसार, मोक्षदा
एकादशी एकादशी तिथि का प्रारंभ 11 दिसंबर
को सुबह 3
बजकर 42 मिनट
पर होगी , जो 12
दिसंबर की रात 1
बजकर 09
मिनट पर समाप्त होगा। इसलिए मोक्षदा
एकादशी 11
दिसंबर 2024
को मनाई जाएगी।
मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती के
रूप में भी मनाया जाता है, इसी
दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद
गीता का पवित्र उपदेश दिया था, जैसा
कि हिंदू महाकाव्य महाभारत में वर्णित है।
कथा
“गोकुल
नाम
के नगर
में वैखानस नामक
राजा
राज्य
करता
था।
उसके
राज्य
में
चारों
वेदों
के ज्ञाता
ब्राह्मण
रहते
थे।
वह राजा
अपनी
प्रजा
का पुत्रवत
पालन
करता
था।
एक बार
रात्रि
में
राजा
ने एक
स्वप्न
देखा
कि उनके
पिता
नरक
में
हैं।
उन्हें
बड़ा
आश्चर्य
हुआ।
प्रात:
वह विद्वान
ब्राह्मणों
के पास
गया
और अपना
स्वप्न
सुनाया।
कहा-
मैंने
अपने
पिता
को नरक
में
कष्टों से घिरा हुआ देखा
है।
उन्होंने
मुझसे
कहा
कि हे
पुत्र
मैं
नरक
में
पड़ा
हूँ।
यहाँ
से तुम
मुझे
मुक्त
कराओ।
जब से
मैंने
ये वचन
सुने
हैं
तब से
मैं
बहुत
बेचैन
हूँ।
चित्त
में
बड़ी
अशांति
हो रही
है। मुझे राज्य,
धन, पुत्र,
स्त्री, हाथी,
घोड़े
आदि
में
कुछ
भी सुख
प्रतीत
नहीं
होता। क्या करू?
राजा
ने कहा-
हे ब्राह्मण
देवताओं!
इस दु:ख
के कारण
मेरा
सारा
शरीर
जल रहा
है।
अब आप
कृपा
करके
कोई
तप, दान,
व्रत
आदि
ऐसा
उपाय
बताइए
जिससे
मेरे
पिता
को मुक्ति
मिल
जाए।
उस पुत्र
का जीवन
व्यर्थ
है जो
अपने
माता-पिता
का उद्धार
न कर
सके। एक
उत्तम
पुत्र
जो अपने
माता-पिता
तथा
पूर्वजों
का उद्धार
करता
है, वह
हजार
मूर्ख
पुत्रों
से अच्छा
है। जैसे
एक चंद्रमा
सारे
जगत
में
प्रकाश
कर देता
है, परंतु
हजारों
तारे
नहीं
कर सकते।
ब्राह्मणों
ने कहा-
हे राजन!
यहाँ
पास
ही भूत,
भविष्य, वर्तमान
के ज्ञाता
पर्वत
ऋषि
का आश्रम
है।
आपकी
समस्या
का हल
वे जरूर
करेंगे।
ऐसा
सुनकर
राजा
मुनि
के आश्रम
पर गया।
उस आश्रम
में
अनेक
शांत
चित्त
योगी
और मुनि
तपस्या
कर रहे
थे।
उसी
जगह
पर्वत
मुनि
बैठे
थे।
राजा
ने मुनि
को साष्टांग
दंडवत
किया।
मुनि
ने राजा
से सांगोपांग
कुशल
पूछी।
राजा
ने कहा
कि महाराज
आपकी
कृपा
से मेरे
राज्य
में
सब कुशल
हैं, लेकिन
अकस्मात
मेरे
चित्त
में
अत्यंत
अशांति
होने
लगी
है।
ऐसा
सुनकर
पर्वत
मुनि
ने आँखें
बंद
की और
भूत
विचारने
लगे।
फिर
बोले
हे राजन!
मैंने
योग
के बल
से तुम्हारे
पिता
के कुकर्मों
को जान
लिया
है।
उन्होंने
पूर्व
जन्म
में
कामातुर
होकर
एक पत्नी
को रति
दी किंतु
सौत
के कहने
पर दूसरे
पत्नी
को ऋतुदान
माँगने
पर भी
नहीं
दिया।
उसी
पापकर्म
के कारण
तुम्हारे
पिता
को नर्क
में
जाना
पड़ा।
तब
राजा
ने कहा
इसका
कोई
उपाय
बताइए।
मुनि
बोले:
हे राजन!
आप मार्गशीर्ष
एकादशी
का उपवास
करें
और उस
उपवास
के पुण्य
को अपने
पिता
को संकल्प
कर दें।
इसके
प्रभाव
से आपके
पिता
की अवश्य
नर्क
से मुक्ति
होगी।
मुनि
के ये
वचन
सुनकर
राजा
महल
में
आया
और मुनि
के कहने
अनुसार
कुटुम्ब
सहित
मोक्षदा
एकादशी
का व्रत
किया।
इसके
उपवास
का पुण्य
उसने
पिता
को अर्पण
कर दिया।
इसके
प्रभाव
से उसके
पिता
को मुक्ति
मिल
गई और
स्वर्ग
में
जाते
हुए
वे पुत्र
से कहने
लगे-
हे पुत्र
तेरा
कल्याण
हो।
यह कहकर
स्वर्ग
चले
गए।“
मार्गशीर्ष
मास
की शुक्ल
पक्ष
की मोक्षदा
एकादशी
का जो
व्रत
करते
हैं, उनके
समस्त
पाप
नष्ट
हो जाते
हैं।
इस व्रत
से बढ़कर
मोक्ष
देने
वाला
और कोई
व्रत
नहीं
है।