हिमालय पर्वत श्रृंखला अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य, ऊंचे शिखरों और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है। परंतु इस भव्यता के पीछे एक गंभीर खतरा छिपा हुआ है — भूकंप। वैज्ञानिक वर्षों से चेतावनी देते आ रहे हैं कि हिमालय क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। यह क्षेत्र 'सिस्मिक जोन 4 और 5' में आता है, जहां किसी भी समय विनाशकारी भूकंप आ सकता है।
हिमालय का निर्माण भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से हुआ था। यह टेक्टॉनिक प्लेट्स आज भी एक-दूसरे की ओर खिसक रही हैं, जिससे क्षेत्र में लगातार तनाव बनता जा रहा है। यही तनाव आगे चलकर भूकंप का कारण बन सकता है। इस भूगर्भीय हलचल का प्रमाण हमें पिछले कुछ दशकों में उत्तराखंड, नेपाल और कश्मीर में आए भूकंपों से मिला है।
1934 का नेपाल-भारत भूकंप: इस भूकंप ने बिहार और नेपाल में भारी तबाही मचाई थी।
2005 का कश्मीर भूकंप: इसमें हज़ारों जानें गईं और लाखों लोग बेघर हो गए।
2015 का नेपाल भूकंप: लगभग 9,000 लोगों की मौत हुई और कई ऐतिहासिक इमारतें ध्वस्त हो गईं।
वैज्ञानिकों की चेतावनी: हाल के वर्षों में कई भूवैज्ञानिक अध्ययन सामने आए हैं, जिनमें दावा किया गया है कि हिमालयी क्षेत्र में एक ‘मेगा भूकंप’ आने की संभावना है। भारतीय प्लेट हर साल लगभग 5 सेंटीमीटर की गति से यूरेशियन प्लेट की ओर बढ़ रही है, जिससे तनाव बढ़ रहा है। यह तनाव कब भयंकर भूकंप में तब्दील हो जाए, कहा नहीं जा सकता।
संभावित प्रभाव: यदि एक बड़ा भूकंप आता है, तो इसके प्रभाव विनाशकारी होंगे:
पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ेंगी।
सड़कों, पुलों और इमारतों को भारी नुकसान होगा।
पानी के स्रोत बाधित हो सकते हैं।
हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।
हालाँकि भूकंप की सटीक भविष्यवाणी असंभव है, लेकिन तैयारी से जानमाल की हानि को कम किया जा सकता है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
भूकंपरोधी भवन निर्माण को अनिवार्य करना।
पुराने निर्माणों की जाँच और मजबूतीकरण।
लोगों को जागरूक करना और नियमित ड्रिल्स कराना।
GPS और सेस्मिक सेंसर नेटवर्क को मज़बूत करना।