भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने
लोगों के दिमाग में उथल-पुथल मचा दी है। खास तौर पर उन लोगों पर इसका ज्यादा असर
देखा जा रहा है जो सोशल मीडिया पर असत्यापित और बिना किसी प्रमाणिक स्रोत से
खबरें देख-सुन रहे हैं।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में
हुई कायराना आतंकी गतिविधि का बदला
लेते हुए भारत सरकार ने 'ऑपरेशन
सिंदूर' के तहत
पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया। इसके बाद से दोनों देशों के बीच स्थिति
तनावपूर्ण बनी हुई है। टीवी चैनल्स लगातार इस स्थिति की रिपोर्टिंग कर रहे हैं, सोशल
मीडिया पर भी भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव की खबरें ट्रेंड कर रही हैं।
इन खबरों ने लोगों के मन में एक अनजाना
सा डर बनाया हुआ है, क्या हम
युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं? हम कितने
सुरक्षित हैं, ऐसे सवाल
मानसिक तनाव बढ़ाने वाले हो सकते हैं। हालांकि सरकार ने देशवासियों को आश्वस्त
किया है कि हमारी सेनाएं मुस्तैदी से न सिर्फ आतंकी देश का सामना कर रही हैं, बल्कि
उनके नापाक मनसूबों को नाकाम भी कर रही हैं।
दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव ने
लोगों के दिमाग में उथल-पुथल मचा दी है। खास तौर पर उन लोगों पर इसका ज्यादा असर
देखा जा रहा है जो सोशल मीडिया पर असत्यापित और बिना किसी प्रमाणिक स्रोत से
खबरें देख-सुन रहे हैं।
विशेषज्ञों
के अनुसार, युद्ध का
डर मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर डालता है, जिससे स्ट्रेस और एंगजाइटी की समस्या
बढ़ सकती है। इस तरह की स्थिति को वॉर एंग्जाइटी कहा जाता है।
वॉर एंग्जाइटी जैसा कि
नाम से ही स्पष्ट होता है कि युद्ध की खबरों को लेकर लोगों के मन में बन रही डर या
चिंता।
मानसिक
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, युद्ध की अप्रत्याशित प्रकृति जिसमें
हिंसा का निरंतर खतरा शामिल होता है ये चिंता और भय को बढ़ाती है। इसका असर उन
लोगों में भी देखा जाता रहा है जो सीधे युद्ध में शामिल नहीं होते हैं।
रिकॉर्ड्स
उठाकर देखें तो पता चलता है कि पहले के कई युद्धों के दौरान भी लोगों में वॉर
एंग्जाइटी और इसके कारण होने वाली समस्याएं देखी गई थीं। युद्ध की भयावह स्थिति
पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसी स्थितियां भी पैदा कर सकती है, जिसका असर
लोगों के दिमाग पर लंबे समय तक बना रहता है।
वॉर एंग्जाइटी होती क्या है?
वॉर
एंग्जाइटी होना आम है, युद्ध के
बारे में खबरें, वीडियो और
तस्वीरों को देखकर मन में डर और चिंता होना आम प्रतिक्रिया है।
यूक्रेन-रूस
युद्ध के दौरान भी बड़ी संख्या में लोगों में इस समस्या को देखा गया था। अमेरिकन
साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने एक सर्वेक्षण में पाया कि शामिल किए गए करीब 80% प्रतिभागियों
ने युद्ध की खबरों-वीडियो के कारण गंभीर रूप से स्ट्रेस और एंग्जाइटी का सामना
किया।
वॉर
एंग्जाइटी और इसके कारण होने वाली समस्याओं को समझने के लिए हार्वर्ड के
विशेषज्ञों ने एक अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि युद्ध की खबरों का लोगों के
मानसिक स्वास्थ्य पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह से असर हो सकता है।
एक अध्ययन
में पाया गया कि परमाणु युद्ध के खतरे ने लोगों को मानसिक रूप से बहुत प्रभावित
किया, इससे
प्रभावित लोगों में पांच साल बाद तक कई प्रकार की मेंटल हेल्थ की समस्याएं बनी
रहीं।
डॉक्टर बताते हैं, ये स्थिति
धैर्य और संयम बनाए रखने की मनोबल को मजबूत रखने की है। ऐसे माहौल में सोशल मीडिया
और बिना प्रमाणिकता वाली खबरों से दूर रहना चाहिए। केवल विश्वसनीय स्रोतों से ही
जानकारी प्राप्त करें।
योग-मेडिटेशन
जैसे अभ्यास मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए जरूरी है। परिवार के साथ समय
बिताएं। अगर चिंता या घबराहट की समस्या हो रही हो तो तुरंत किसी विशेषज्ञ की सलाह
लें। बच्चों के मन पर इसका गंभीर असर हो सकता है, इसलिए माता-पिता विशेष ध्यान रखें।